उस समय IIMC में सिफारिशों का दौर था, जो आज भी जारी है: नितिन ठाकुर, आज तक

नितिन पिछले छः सालों से मीडिया के अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. इसमें खासतौर पर वेबसाइट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया शामिल है. वर्तमान में वह आज तक  में बतौर एडिटोरियल प्रोड्यूसर काम कर रहे हैं. इससे पहले उन्होंने न्यूज 24, जी न्यूज और बिजनेस चैनल CNBC के साथ काम किया है. आप उन्हें ट्विटर पर फॉलो कर सकते हैं @nitinthakur

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आप अपने स्कूल एजुकेशन के बारे में बताइए. उस समय आप क्या बनना चाहते थे?

मेरे पापा एयर फोर्स में थे. बीस सालों तक. इसलिए मेरी स्कूलिंग कई जगहों से हुई है. शुरुआत वडोदरा से हुई थी. फिर जैसलमेर, दिल्ली, सहारनपुर (जहां मेरा गांव भी है) से पढ़ा. मैंने मैथ्स में ग्रेजुएशन और फिर मास्टर्स किये. स्कूल में मुझे पत्रकार बनने का कोई ख्याल नहीं था. बस यह आईडिया था कि मैं लेखक बन सकता हूं.

पत्रकारिता में दिलचस्पी कैसे आई?

ग्रेजुएशन और मास्टर्स के दौरान मैं हिन्दू संगठन के राजनीति में सक्रिय था. और करीब आठ साल हो गए थे. फिर मेरे दिमाग में आया कि पढ़ाई करके नौकरी कर लेते हैं. थोड़ा स्टेबल हो जाते हैं. राजनीति ही करनी है तो बाद में कर लेंगे. फिर मैंने MBA में एडमिशन लेने की कोशिश की. पर मैंने सोचा कि मैं MAT या CAT दे दूं तब भी मैं कतार में सबसे पीछे ही बैठूंगा. क्यूंकि यह मेरा कोर इंटरेस्ट नहीं था. मुझे लिखना पसंद था. समाज और राजनीति में दिलचस्पी थी.

तो मुझे लगा कि पत्रकारिता मेरे लिए सही जगह हो सकती है. मुझे खुद पर इतना भरोसा तो था कि इसमें कतार में सबसे पीछे नहीं बैठूंगा. इसलिए मैंने सोचा कि पत्रकारिता की जाए.

क्यूंकि वहीं एक रास्ता था इस क्षेत्र में आने का. और मुझे पहले से मालूम था कि सिफारिशें यहां बहुत चलती हैं. क्यूंकि कोई पुख्ता तरीका नहीं था इस क्षेत्र में आने का, MAT या CAT की तरह कि आप यह परीक्षा पास कर लो तो आपका चयन हो जायेगा. मेरे पास सिफारिश तो थी नहीं तो मैंने सोचा कि थोड़ी मेहनत की जाये. बस लिखने पर भरोसा था कि नाकाम नहीं होऊंगा.

आपने आईआईएमसी में एडमिशन के लिए प्रयास किया?

मैंने IIMC में दो रिटेन एग्जाम दिया. दोनों क्लियर हुए. इंटरव्यू के दौरान चीजें कुछ खराब हुईं. उस समय IIMC में सिफारिशों का दौर था, जो आज भी जारी है. बाद में अलग-अलग सूत्रों से इस बात की पुष्टि भी हुई. और अब तो इसे मैं और अच्छे से जान गया हूं. IIMC में गुणवत्ता भी गिर गई है. तो IIMC में मेरा नहीं हुआ. फिर मैंने ISOMES में एडमिशन ले लिया.

ISOMES में आपकी लाइफ कैसी थी?

मीडिया में नौकरी का जितना बेतरतीब हिसाब किताब है वैसा ही कुछ पढ़ाई-लिखाई का भी है. अभी कोई एक सिलेबस का ढांचा नहीं बन पाया है. तो वहां बेसिक पढ़ाई लिखाई हुई. हां, प्रैक्टिकल पे काफी जोर था और वहीं होना भी चाहिए. मेरा इंटरेस्ट इसमें बहुत ज्यादा था. क्यूंकि हमें पता था कि मेरे पास कोई और चारा तो है नहीं. और अगर ऐसे ही लौट जायेंगे तो बहुत गिल्ट होगा. तो फिर उस चीज को जस्टिफाई करने के लिए बहुत इंटरेस्ट दिखाते थे. अपनी ओर से बहुत डिमांड करते थे की प्रैक्टिकल कराएं जाये. हमारे जो संगी-साथी थे वो भी पढ़ने वाले ही थे. तो हमारा बैच जो है दूसरों की तुलना में थोड़ा गंभीर रहा. हम बस काम से काम रखते थे. उसी दौरान रिपोर्ट बनाना सीखा. कैमरा का अनुभव लिया. और उसी दौरान इंटर्नशिप (न्यूज 24 चैनल में) के लिए भी चला गया, जो सिलेबस का ही हिस्सा था. यह बहुत लाभदायक साबित हुआ.

क्या आपने मास्टर्स किया था? ये कितना जरूरी है? इसने आपको कितना फायदा पहुंचाया.

मैंने मास्टर्स पहले इतिहास में किया था. उसके बाद मैंने एक मास्टर्स पत्रकारिता में किया. नहीं कोई जरूरी नहीं है. क्यूंकि जैसा कि मैं बता ही रहा हूं मेरे पास कोई चारा नहीं था. मेरे पास सिफारिशें नहीं थी. तो हमने एक तयशुदा  तरीका अपनाया कि पहले पढ़ाई कर लेते हैं. फिर इंटर्नशिप करेंगे. और उसमें कुछ कर के दिखायेंगे. किसी को पसंद आएगा तो रख लेगा. लेकिन यह तरीका सभी के लिए जरूरी नहीं है. क्यूंकि आप डिप्लोमा लेकर आ सकते हैं. बिना डिप्लोमा के भी आ सकते हैं. असल जिन्दगी में इन सब का कोई महत्व नहीं है. इसका नौकरी या काम सीखने से कोई लेना देना नहीं है.

मीडिया की पढ़ाई करना और मीडिया में काम करना, दोनों में क्या अंतर है?

मैंने जो पढ़ा था वो तो मैं भूल गया. आप दुनिया में कितनी भी अच्छी पढ़ाई कर के आ जाइये आपको असल जिन्दगी में काम अलग ही करना पड़ेगा. खास तौर कर न्यूज चैनलों में. जहां पर माहौल और चुनोतियां दोनों अलग तरीके की होती हैं. आप जो पढ़ के आये हो आप उसकी मदद से कोई सॉफ्टवेयर चला ही नहीं पाओगे. क्यूंकि वो सॉफ्टवेयर आपको इंस्टिट्यूट में मिलेगा ही नहीं. वो आपको सिर्फ न्यूजरूम में मिलेगा. तो यह चुनौती आपको सिर्फ वहीं पता चलेगी. उसी तरीके से एडिटिंग मशीन अलग अलग तरीके की होती है. और मशीन के लिए आप कितने टेक्निकली साउंड हैं यह न्यूजरूम में ही पता चलता है. हर चैनल में यह मशीन अलग होती है. हर चैनल का अपना थीम होता है. खबरों के ट्रीटमेंट का तरीका होता है. किसी चैनल में जाने के बाद ही आपको पता चलता है कि किस तरह का काम होता है. आपको इंस्टिट्यूट में बैठ कर कुछ भी पता नहीं चलता. फर्क इतना है अगर आपके पास सिफारिशे नहीं है तो चैनलों में एंट्री करने के लिए कॉलेज सहयोगी हो सकते हैं.

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This interview is taken by @alokanand  To suggest an interview, feedbacks, comments, work with us, write at alok@acadman.org

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